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फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र

यूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स

प्रकाशक : कानपुर पब्लिशिंग होम प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 307
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर

प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-
डीबी के पूर्ववर्ती शिक्षाशास्त्रियों का कहना था कि शिक्षा जीवन के वृहत् उद्देश्य में सहायक होती है। स्पेन्सर ने शिक्षा को पूर्ण जीवन की तैयारी का साधन माना है। डीवी ने इस सिद्धांत का विरोध किया और यह कहा कि शिक्षा वास्तविक एवं वर्तमान जीवन की एक प्रक्रिया है न कि भावी जीवन की तैयारी। वह जीवन की समस्याओं से सम्बन्धित रहती है। व्यक्ति के जीवन में प्रत्येक क्षण विकास की प्रक्रिया तथा अनुभवों का पुनर्निर्माण होता रहता है, जो शिक्षा द्वारा ही सम्भव है। अतः डीवी ने शिक्षा के सम्बन्ध में अपने निम्न विचार प्रस्तुत किए - "शिक्षा स्वयं जीवन है वह भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है।' व्यक्ति के जीवन में विकास की प्रक्रिया पर जोर देते हुए डीवी ने शिक्षा और जीवन की एकरूपता सिद्ध की है। वह जीवन का सतत् विकासशील मानता है। विकास ही जीवन का चिन्ह है। मानव जाति सदैव विकास की ओर अग्रसर रहती है। इसी विकास को दूसरे शब्दों में शिक्षा कहते हैं। जिस प्रकार जीवन को विकास से अलंग नहीं किया जा सकता उसी प्रकार शिक्षा का भी जीवन से अलग कोई अस्तित्व नहीं है। डीवी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि शिक्षा ही विकास है और जब तक सृष्टि विकासोन्मुख है शिक्षा की प्रक्रिया चलती रहेगी। जीवन में विकास की प्रक्रिया विभिन्न दिशाओं की ओर चलती रहती है। वह कभी बच्चनलाई तो कभी बुराई की ओर उन्मुख होती है। यदि विकास की क्रिया पतनोन्मुख होती है तो शिक्षा का श्व अपूर्ण ही रह जाता है। अतः स्वस्थ विकास के लिए डीवी जीवन में अनुभवों के सतत् पुनर्निर्माण की आवश्यकता पर जोर देते हैं। वातावरण की विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य अपने अनुभवों की वृद्धि करता रहता है। अनुभव के निरीक्षण, परीक्षण एवं प्रयोग द्वारा उसे वह परिष्कृत तथा पुनसंगठित करता रहता है। जीवन में नवीन अनुभवों के आधार पर प्राचीन अनुभव अस्वीकृत तथा पुनर्निर्मित होते हैं। यह कार्य शिक्षा द्वारा सम्पन्न होता है। व्यक्ति जीवन भर सीखता रहता है और परिवर्तित वातावरण के अनुकूल अपने अनुभवों का सतत विकास तथा पुनर्निर्माण करता रहता है। जीवन में विकास की दृष्टि से इस क्रिया का अत्यधिक महत्व है।
अतः स्पष्ट है कि डीबी शिक्षा और जीवन का घनिष्ठ सम्बन्ध स्वीकार करते हैं। जन्म से ही बालक शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करता है और जीवनपर्यन्त वह शिक्षा के आवरण में ढका रहता है। व्यक्ति के विकास तथा उसके अनुभवों के पुनर्निर्माण से भिन्न शिक्षा का कोई अस्तित्व सम्भव नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
  4. प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
  6. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
  7. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
  8. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
  9. प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
  10. प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  23. प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
  26. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
  27. प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
  28. प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
  29. प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
  30. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
  33. प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
  34. प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
  36. प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  37. प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
  44. प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
  46. प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

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